मुझमें भी तो इक जंगल है
जाने कितने पेड़ उगे हैं
कितने ही विचार उमड़े हैं
कितनी बेल लताएँ लहरायें
जिसमे मन मेरा झूमे जाए
किसकी ये बांकी चितवन है
तन को मेरे जो सिहरा जाए
दिल को मदहोश किए जाए
@मीना गुलियानी
जाने कितने पेड़ उगे हैं
कितने ही विचार उमड़े हैं
कितनी बेल लताएँ लहरायें
जिसमे मन मेरा झूमे जाए
किसकी ये बांकी चितवन है
तन को मेरे जो सिहरा जाए
दिल को मदहोश किए जाए
@मीना गुलियानी
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