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रविवार, 3 मई 2020

डर - मिनी कहानी

घटना उस समय की है जब मैं स्कूल में
पढ़ने जाती थी।  हमारी अध्यपिका जी 
सख्त अनुशासन से पढ़ाती  थी।  कक्षा में 
शोर नहीं होने देती थी।  खुद व्यस्त होने 
के उपरान्त भी उनका ध्यान सबकी ओर 
रहता था कि कोई शैतानी तो नहीं कर 
रहा।  एक दिन जब परीक्षा हो रही थी तो 
मेरे पीछे वाली सीट की लड़की ने खुद 
नकल करके पर्ची मेरी टेबल पर फैंक दी। 
मैं इससे अनभिज्ञ थी।  

जब परीक्षा के दौरान उड़नदस्ता आया तो 
मेरी टेबल पर वो पर्ची उन्हें मिली।   मैंने 
उनसे बहुत कहा कि मुझे पता नहीं मैं तो 
अपना पेपर कर रही थी लेकिन किसी ने भी 
नहीं सुना।  मुझे बहुत ठेस पहुँची कि अकारण 
ही मुझे दोषी ठहराया गया।  घर से माता जी 
पिता जी को भी बुलवाया गया। यह सब
देखकर मुझे डर भी बहुत लगा लेकिन फिर
भी मैंने साहस नहीं छोड़ा।  मन पर थोड़ा काबू
पाकर मैं सीधे प्रधान अध्यापिका जी के कक्ष
में गई उनको सारा वाकया सुनाया।  वो बड़ी
सह्रदया महिला थीं।  उन्होंने उस पर्ची से मेरी
हस्तलिपि की जाँच दुबारा करवाई और मुझे
निर्दोष साबित किया. उस दिन के बाद से फिर
मैंने हौंसले के दम पर जीना सीखा और डरना
छोड़ दिया।
@मीना गुलियानी



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