इक यही तमन्ना है और कोई चाह नहीं
लुट जाएं तेरे प्यार में और कोई राह नहीँ
सहते जाएँ सितम जमाने के
मुस्कुराते रहें
मिले कितने ही गम
गुनगुनाते रहें
प्यार की हसीन वादी में
चाहत के फूल खिलाते रहें
गम न कर कोई गर जलाए आशियाँ
उजड़ा आशियाँ फिर बसाते रहें
झड़ गए पत्ते शाख से तो क्या हुआ
प्यार के सुमन फिर खिलाते रहें
कोई न रह जाए गम अछूता
सबको गले से हम लगाते रहें