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रविवार, 17 जनवरी 2016

इल्तज़ा की है



मेरे दिल ने फिर अमन  की दुआ की है
न हो तू कभी खफा ये सदा दी है

                 तू रहे  सदा सलामत हर ख़ुशी तुझे मिले
                  हम रहें या न रहें तू बहारों में पले

हर बूटे पत्ते पे तेरा नाम लिखा रहे
हरसू गुलज़ार में तू ही समाया रहे

                यूँ ही सपनों का जहाँ मेरा बसा रहे
                 खुदा से मैने  इतनी इल्तज़ा की है 

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