खुश रहने का भरम है सबको
लेकिन ख़ुशी कहीं नहीं मिलती
कहने को तो जिन्दा है लेकिन
जिंदगी कहीं नहीं मिलती
रोज़ ही हम फरेब खाते है
उम्मीदों के चिराग जलते है
रोशनी को भी हम तरसते है
भूले भटके से तुम चले आओ
दीये उम्मीद के ही जलते है
रोशनी का फरेब खाते है
यह बहकी हुई फ़िज़ा है उदास
इन बहारो की हर अदा है उदास
गुलशन को तो भा गई है खिज़ां
इसकी उजड़ी हुई खिज़ा है उदास
दिल के हर जख्म को छिपाते है
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