यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 11 जनवरी 2016

यादों का सफर

यही है यादों का सफर
क्या करूँ कहाँ तक जाऊँ
बहुत गहन अँधेरा है अब
जाते ही ज़रा मन डूबता है अब

               कोई मनमीत नही, साथी नहीं
                जिसके साथ मन विचरण करे अब
                क्या करूँ कोई तो ये समझाये
                क्या सब कुछ भूल जाऊँ मै अब

वो पल न जाने कैसे थे
बिखर गए वो प्यारे स्वप्न
हो गई अकेली शाम सुबह
वो प्रेमालाप की धड़कन

              सिर्फ यादें है उन चंद लम्हों की
              बस और कुछ नहीं न कोई मंजिल
             बाकी है अँधेरी गलियों का सफर
              सुनसान वीरानी डगर, बिना हमसफ़र 

2 टिप्‍पणियां: