हम पे इल्ज़ाम क्यों है कि मुहब्बत की है
दिल तुझे देके क्या क़यामत की है
गर न सम्भाला जाए दिल तो लौटा देना
हमने तुझे अपना जानकर इनायत की है
पूछा गर रब ने तो बता देंगे उसे
इश्क पे जान देने की शरारत की है
तेरी नज़रों से कभी दिल को सलाम आया था
अब कैसे नज़रें चुराने की हिमाकत की है
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