उस काल अचानक मादक
चंचल समीर वह आया
सब प्रहरी भी अलसाये
निद्रा ने राज्य जमाया
स्वर्गीय किरण इक फूटी
हो गई प्रकाशित कारा
वसुदेव देवकी का फिर
चमका यूँ भाग्य सितारा
थी मोर मुकुट कटि काछिन
उर में बैजयन्ती माला
धर वेणु अधर पर प्रकटे
वसुदेव देवकी लाला
हँसती थी दिव्य प्रभाएँ
कारा पट खुलते जाते
थी लीलाधर की लीला
सब साधन सजते जाते
रजनी की नीरवता में
डूबी थी गोकुल नगरी
सपनों में खोई जसुदा
सोती थी सुध बुध बिसरी
दृग उमड़ पड़े अब वसु के
वह नयन सिंधु लहराया
कम्पित हाथो में ले कन्या
निज शिशु को वहाँ सुलाया
अपना सर्वस्व लुटाकर
युग युग के पुण्य कमाए
जग जान गया है जैसे
गोकुल के कान्ह कहाए
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