तुम आकर क्यों हँस जाती
उर की टूटी वीणा में
क्यों मधुर रागिनी गाती
त्रय तापों के बीहड़ में
मै नित्य डोलता फिरता
तुम लेकर निज गोदी में
क्यों बनती दुःख की हर्ता
अब मुझे न जग भाता है
तुम आकर क्यों अपनाती
अंधियारे जीवन पथ पर
बन मृदुल चाँदनी छाती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें