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गुरुवार, 21 जनवरी 2016

सुप्त जनता



शिराओं का खून जम गया 
जनता हाहाकार कर उठी 
चारों ओर क्रंदन मच गया 
रोटी,कपड़ा,और मकान दो 
यही समवेत स्वर गूँज उठे 
कहाँ गया धमनियों के  रक्त  का 
वो शुभ्र प्रवाह ,क्या सो गया 
जनता के प्रहरी क्या अपने 
वादों से चूक गए /?
क्यों मूक हो गई वाणी 
जो जोश भरी थी गुंजित थी 
जिसमे शेरों सी गर्जना थी 
उठो आवाज़ बुलंद करो 
फिर से जागृति का आह्वान करो 
उठो फिर से नया अभियान शुरू करो 

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