तर्ज ----मै तो इक ख्वाब हूँ
दुनिया एक ख्वाब है इससे कभी तू प्यार न कर
भक्ति में शक्ति है इससे कभी इंकार न कर
ये तेरी देही इक रोज़ चली जाएगी
मानुष की जून फिर न तेरे हाथ आएगी
भूलकर खुद को और अहंकार न कर
ये जो परिवार तेरा मतलब के नाते है
पैसे बिन मीत नही जो भी तुझे चाहते है
माया छाया पर तू बन्दे ऐतबार न कर
माता का सिमरन कर जीवन को बना ले तू
भक्ति और शक्ति से मुक्ति आज पा ले तू
पापों और गुनाहों का और सिर पे भार न कर
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