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रविवार, 24 मई 2015

(06 माता की भेंट (06)



तर्ज ----मै तो इक ख्वाब हूँ

दुनिया एक ख्वाब है इससे कभी तू प्यार न कर 
भक्ति में शक्ति है इससे कभी इंकार न कर 

ये तेरी देही इक रोज़ चली जाएगी 
मानुष की जून फिर न तेरे हाथ आएगी 
भूलकर खुद को और अहंकार न कर 

ये जो परिवार तेरा मतलब के नाते है 
पैसे बिन मीत नही जो भी तुझे चाहते है 
माया छाया पर तू बन्दे ऐतबार न कर 

माता का सिमरन कर जीवन को बना ले तू 
भक्ति और शक्ति से मुक्ति आज  पा ले तू 
पापों और गुनाहों का और सिर पे  भार न कर 

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