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रविवार, 31 मई 2015

माता की भेंट - 30



तर्ज -----चांदी  दीवार   न  तोड़ी 

इस दुनिया में नज़र सहारा , मुझको आया न दाती 
तूने भी मैया मेरी , क्यों यूं रुलाया है दाती 

दर तेरे पे आ पहुंचा मै दुनिया से माँ दुखियारा 
तेरे चरणो में माँ लेने आया हूँ मै सहारा 
डूबे किश्ती बीच भंवर में कोई नही है किनारा 
तूफानों ने आन के मुझको बहुत सताया है दाती 

भेंट चढ़ाई जोत जगाई महिमा तेरी गाता हूँ 
जो दुःख तेरे जग ने दिए आज मै सुनाता हूँ 
रोता रहा हूँ दुखो में दाती ,आज तुम्हे भी रुलाता हूँ 
दुनिया ने मुझको ठुकराया ,तूने क्यों भुलाया है दाती 

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