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शनिवार, 23 मई 2015

गुरुदेव के भजन 395 (Gurudev Ke Bhajan 395)


हे मन तू अब जाग ज़रा तेरी उम्र गुजरने वाली है 
विषयो से अपने मन को हटा तेरी उम्र गुजरने वाली है 

विषयो ने तुझे भरमाया है , जग सपना है इक छाया है 
तू अब भी समझ न पाया है 

जग झूठा गोरखधंधा है , ये मोहमाया का फन्दा है 
रे मन तू अब चेत ज़रा 

ये झूठे रिश्ते नाते है न काम कभी ये आते है 
रे मन तू प्रभु से प्रीत लगा 

दुनिया है सारी मतलब की क्या बात करे तू इस जग की 
झूठी आशा को छोड़ ज़रा 

तू प्रभु चरणो से प्रीत लगा, जीवन को अपने सफल बना 
पी नाम प्याला सोच ज़रा 

किसका यहाँ रहा ठिकाना है ये जग तो इक वीराना है 
तू मन की कुण्डी खोल ज़रा 

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