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रविवार, 31 मई 2015

माता की भेंट - 35



इक परदेसी मैया सानू कह गया, निश्चा वाला दाती तो मुरादा ले गया 
जेह्ड़ा जाप निश्चा नाल करण बै गया,  ओहदा बेडा सागर तो पार बह गया 

मैया दे भवन दी ऐ ही निशानी जगमग जग रही जोत नूरानी 
राही केहन्दा नेड़े है भवन रह गया 

जग दी तू दाती नाम शेरा वाली ,  आये जो सवाली कदी  जाये न खाली 
मै वि दास आप दी शरण आ गया 

पापिया नू मारे भगता नू तारे ,  पल विच सेवका दी बिगड़ी संवारे 
ज्ञान कर जेहड़ा चरणा च आ गया 

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