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शनिवार, 23 मई 2015

गुरुदेव के भजन 387 (Gurudev Ke Bhajan 387)


गुरु जी मेरे अवगुण चित न धरो 
तारणहार कहाते हो तुम अब तो पार करो 

मै अपराधी जन्म जन्म का 
दोष न हृदय धरो गुरु जी मेरे अवगुण चित न धरो 

विषयो ने मुझको भरमाया 
अब तेरी शरण पड्यो गुरु जी मेरे अवगुण चित न धरो 

मै हूँ एक जहाज का पंछी 
ठोर न कोई मेरो गुरु जी मेरे अवगुण चित न धरो 

भक्ति  दान में अर्पण करदो 
जीवन सफल करो गुरु जी मेरे अवगुण चित न धरो 

तेरी शरण में आया बाबा 
नैया  पार  करो गुरु जी मेरे अवगुण चित न धरो 

धन दोलत की चाह  नही है 
मन की दुविधा हरो  गुरु जी मेरे अवगुण चित न धरो 

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