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शनिवार, 23 मई 2015

गुरुदेव के भजन 394 (Gurudev Ke Bhajan 394)



 तर्ज -------घूँघट के पट खोल रे 

मन की आँखे खोल रे हरि दर्शन होंगे 
आसन से मत डोल रे हरि दर्शन होंगे 

इस घट भीतर काशी  मथुरा 
अनहद बाजे ढोल रे 

इस घट में सब जगत पसारा 
जीवन ये अनमोल रे 

पी ले प्रभु के नाम का प्याला 
जीवन में रस घोल रे 

तन मन उसके करदे हवाले 
आनन्द में तू डोल रे 

जीवन उसके अर्पण करके 
सुख पाया अनमोल रे 


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