अब चेत कर अनाड़ी, विश्वास धार मन में ,
बाहर क्या ढूढ़ता है ,प्रभु को सम्भार तन में
तू हो रहा बहिर्मुख , प्यारे लगे क्षणिक सुख ,
अंतर नही टटोले , ढूढे गुफा में बन में
उसके है रंग न्यारे , नाना ये रूप धारे
कभी ये मयूरा बनके, नाचे ये तेरे मन में
आसन से न तू डोले, अनहद का भेद खोले
जादू सा बनके बोले, तेरी सच्ची लगन मे
उसका ये खेल सारा , ये जग का सब पसारा
पी नाम का प्याला , खोजा उसी लगन में
जीवन से मुक्ति पाओ ,उसकी शरण में जाओ
तेरे घट में है वो हाज़िर , मत ढूँढ तू गगन में
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