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शनिवार, 23 मई 2015

गुरुदेव के भजन 393 (Gurudev Ke Bhajan 393)



अब चेत कर अनाड़ी, विश्वास धार मन में ,
बाहर क्या ढूढ़ता है ,प्रभु को सम्भार तन में 

तू हो रहा बहिर्मुख , प्यारे लगे क्षणिक सुख ,
अंतर नही टटोले , ढूढे गुफा में बन में 

उसके है रंग न्यारे , नाना ये रूप धारे 
कभी ये मयूरा बनके, नाचे ये तेरे मन में 

आसन से न तू डोले, अनहद का भेद खोले 
जादू सा बनके बोले, तेरी  सच्ची लगन मे

उसका ये खेल सारा , ये जग का सब पसारा 
पी नाम का प्याला , खोजा उसी लगन में 

जीवन से मुक्ति पाओ ,उसकी शरण में जाओ 
तेरे घट में है वो हाज़िर , मत ढूँढ तू गगन में 

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