खा खा के ठोकरें भी ,फिर भी समझ न पाया
करे तू गुमान जिस पर , है वो नाशवान काया
कभी नाम न लिया है , कभी ध्यान न दिया है
जीवन गवाया तूने , कुछ काम न किया है
अब तो प्रभु सिमर ले , अन्त है समीप आया
कैसे पाये चैन को तू, न किया भला किसी का
है बिछाए पथ में कांटे , न बना तू मीत किसका
पछताने से क्या हासिल , कुछ हाथ में न आया
है प्रभु के खेल सारे , मत कर गुमान प्यारे
झूठे है रिश्ते नाते , मतलब के मीत सारे
तज दे गुमान सारे ,प्रभु की है सारी माया
है वक्त तू सम्भल जा, कुछ कर्म अच्छे कर ले
भज नाम को तू बन्दे ,कुछ ध्यान उसका धर ले
कठपुतली सा तू नाचे ,माया ने है नचाया
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