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बुधवार, 20 मई 2015

गुरुदेव के भजन 357 (Gurudev Ke Bhajan 357)



रे मन भज रे सतगुरु चरना 
सतगुरु चरना भव भय हरना 

जीवन का संगीत यही है जग का सच्चा मीत यही है 
जो चाहे भव पार उतरना 

झूठे दुनिया के सब नाते अंत समय न साथ निभाते 
सतगुरु चरणो को न बिसरना 

काहे जग से प्रीत लगाई छोड़ दे बन्दे अब चतुराई 
बिरथा क्यों संशय में पड़ना 

मनुष्य चोला है अनमोला तूने क्यों इसमें विष घोला 
इस जग के न मोह में पड़ना 

जाग जा बन्दे नाम सुमिर ले हृदय में जोत उजागर करले 
सत्संग से विषयो से उबरना


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