रे मन भज रे सतगुरु चरना
सतगुरु चरना भव भय हरना
जीवन का संगीत यही है जग का सच्चा मीत यही है
जो चाहे भव पार उतरना
झूठे दुनिया के सब नाते अंत समय न साथ निभाते
सतगुरु चरणो को न बिसरना
काहे जग से प्रीत लगाई छोड़ दे बन्दे अब चतुराई
बिरथा क्यों संशय में पड़ना
मनुष्य चोला है अनमोला तूने क्यों इसमें विष घोला
इस जग के न मोह में पड़ना
जाग जा बन्दे नाम सुमिर ले हृदय में जोत उजागर करले
सत्संग से विषयो से उबरना
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