मेरा मन बाबा खाए हिचकोले नैया मेरी डगमग डोले
वो तो बीच फंसी मंझधार में पार लगाने आ जाना
तुम बिन मेरा कोई न बाबा किसको आज पुकारूँ
तेरे बिना मेरी कौन सुनेगा किसकी बाट निहारू
मै तो कबसे खड़ी तेरी आस लिए तेरा रस्ता रही निहार रे
पार लगाने आ जाना
अखियाँ मेरी तरसे बाबा दर्शन आज दिखादो
कौन गली में तुम छिप बैठे मुझको पता बतादो
क्यों रूठ गए हम द्वार खड़े नयनो से भी जलधार रे
पार लगाने आ जाना
माफ़ करो बाबा गलती मेरी भूले मेरी बिसरा दो
न बोलो तो प्राण भी हर लो ऐसी तो न सज़ा दो
रूठके हमसे बैठोगे कब तक पंथ रहा मै निहार रे
पार लगाने आ जाना
_____________________***__________________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें