बहाई प्रेम की गंगा नहा लो जिसका जी चाहे
अजब मस्ती है आँखों में बड़ा जादू है बातों में
छलक रही प्रेम की मदिरा भरा लो जिसका जी चाहे
जो भी आता सवाली है कभी जाता न खाली है
खुले है उसके दरवाजे भरा लो जितनी जी चाहे
अमृत त्रिकुटी का पिलाये नशा जीवन भर छा जाये
न गम उसको फिर सताए मना लो जिसका जी चाहे
है बाबा नूरे इलाही झुकती है सारी खुदाई
किसी ने महिमा न पाई मुकददर जगा लो जी चाहे
दूर से संगत है आई बाबा ने मेहर बरसाई
मै भी तेरी शरण आई मुरादे पा लो जी चाहे
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