धूप का कतरा बनती जा रही है जिंदगी
छाँव से दूर जा रही है जिंदगी
जाने क्यों वो रूठे हैं हमसे
दर्द बनती जा रही है जिंदगी
जहाँ ये नुमाइशघर बन गया
तन्हा तन्हा है मेरी ये जिंदगी
दिल की तिश्नगी यूं बढ़ने लगी
पीड़ा का समुंद्र बनी ये जिंदगी
सब्र जैसे कैद होके रह गया
मुक्ति को छटपटा रही है जिंदगी
हरसू है अँधेरा सा इक छाया हुआ
रोशनी से कतरा रही है जिंदगी
सितम हमपे बेशुमार होते रहे
मांगती है अब हिसाब जिंदगी
@मीना गुलियानी
छाँव से दूर जा रही है जिंदगी
जाने क्यों वो रूठे हैं हमसे
दर्द बनती जा रही है जिंदगी
जहाँ ये नुमाइशघर बन गया
तन्हा तन्हा है मेरी ये जिंदगी
दिल की तिश्नगी यूं बढ़ने लगी
पीड़ा का समुंद्र बनी ये जिंदगी
सब्र जैसे कैद होके रह गया
मुक्ति को छटपटा रही है जिंदगी
हरसू है अँधेरा सा इक छाया हुआ
रोशनी से कतरा रही है जिंदगी
सितम हमपे बेशुमार होते रहे
मांगती है अब हिसाब जिंदगी
@मीना गुलियानी
nice.........................
जवाब देंहटाएं