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मंगलवार, 6 सितंबर 2016

दर्द बनती जा रही है जिंदगी

धूप का कतरा बनती जा रही है जिंदगी
छाँव से दूर जा रही है जिंदगी

जाने क्यों वो रूठे हैं हमसे
दर्द बनती जा रही है जिंदगी

जहाँ ये नुमाइशघर बन गया
तन्हा तन्हा है मेरी ये जिंदगी

दिल की तिश्नगी यूं बढ़ने लगी
पीड़ा का समुंद्र बनी ये जिंदगी

सब्र जैसे कैद होके रह गया
मुक्ति को छटपटा रही है जिंदगी

हरसू है अँधेरा सा इक छाया हुआ
रोशनी से कतरा रही है जिंदगी

सितम हमपे बेशुमार होते रहे
मांगती है अब हिसाब जिंदगी
@मीना गुलियानी




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