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मंगलवार, 13 सितंबर 2016

यादें

यूँ ही कभी याद आकर मुझे बुलाती है
मैं तुम्हारी आहट सुनते ही भागकर आता हूँ
तुम्हारी आँखों में झाँककर तुम्हें पढ़ता हूँ
तुम्हें देखकर ही मैं आतुर हो उठता हूँ
तुम्हारे नयन जब अश्रुजल से भीगते हैं
तब मेरा मन भी व्याकुल हो उठता है
उन्हें हाथ उठाकर भी पोंछ नहीँ पाता
मैं मर्यादा की सीमा नहीँ तोड़ पाता
दूर से ही तुम्हें देखकर तुम्हें चाहता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर भी पहुँच नहीँ पाता
कभी जब हवा तुम्हारे गेसुओं से चेहरा ढकती है
तुम्हारी वो छवि मेरे मन में हरदम बसती है
मैं उन सुनहरी यादों में खुद को डुबो देता हूँ
सुबह की किरणें जब तुम पर पड़ती हैं                          
तुम धीरे धीरे उनींदी पलकों से मुस्काती हो
हर लम्हा वो गुज़रा पल चलचित्र बनकर
मेरे हृदय पटल पर ख़ामोशी से फिसलता है
मैं यूं ही गुमसुम दीवाना सा बैठा हुआ
उन बीते लम्हो के साये के पन्ने पलटता हूँ
@मीना गुलियानी

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