यूँ ही कभी याद आकर मुझे बुलाती है
मैं तुम्हारी आहट सुनते ही भागकर आता हूँ
तुम्हारी आँखों में झाँककर तुम्हें पढ़ता हूँ
तुम्हें देखकर ही मैं आतुर हो उठता हूँ
तुम्हारे नयन जब अश्रुजल से भीगते हैं
तब मेरा मन भी व्याकुल हो उठता है
उन्हें हाथ उठाकर भी पोंछ नहीँ पाता
मैं मर्यादा की सीमा नहीँ तोड़ पाता
दूर से ही तुम्हें देखकर तुम्हें चाहता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर भी पहुँच नहीँ पाता
कभी जब हवा तुम्हारे गेसुओं से चेहरा ढकती है
तुम्हारी वो छवि मेरे मन में हरदम बसती है
मैं उन सुनहरी यादों में खुद को डुबो देता हूँ
सुबह की किरणें जब तुम पर पड़ती हैं
तुम धीरे धीरे उनींदी पलकों से मुस्काती हो
हर लम्हा वो गुज़रा पल चलचित्र बनकर
मेरे हृदय पटल पर ख़ामोशी से फिसलता है
मैं यूं ही गुमसुम दीवाना सा बैठा हुआ
उन बीते लम्हो के साये के पन्ने पलटता हूँ
@मीना गुलियानी
मैं तुम्हारी आहट सुनते ही भागकर आता हूँ
तुम्हारी आँखों में झाँककर तुम्हें पढ़ता हूँ
तुम्हें देखकर ही मैं आतुर हो उठता हूँ
तुम्हारे नयन जब अश्रुजल से भीगते हैं
तब मेरा मन भी व्याकुल हो उठता है
उन्हें हाथ उठाकर भी पोंछ नहीँ पाता
मैं मर्यादा की सीमा नहीँ तोड़ पाता
दूर से ही तुम्हें देखकर तुम्हें चाहता हूँ
तुम्हारा साथ पाकर भी पहुँच नहीँ पाता
कभी जब हवा तुम्हारे गेसुओं से चेहरा ढकती है
तुम्हारी वो छवि मेरे मन में हरदम बसती है
मैं उन सुनहरी यादों में खुद को डुबो देता हूँ
सुबह की किरणें जब तुम पर पड़ती हैं
तुम धीरे धीरे उनींदी पलकों से मुस्काती हो
हर लम्हा वो गुज़रा पल चलचित्र बनकर
मेरे हृदय पटल पर ख़ामोशी से फिसलता है
मैं यूं ही गुमसुम दीवाना सा बैठा हुआ
उन बीते लम्हो के साये के पन्ने पलटता हूँ
@मीना गुलियानी
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