यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 12 सितंबर 2016

दुनिया में अफसाना न हो

मेरे दिल तू मुझे कहीँ ले चल जहाँ कोई न हो
अपना तो अपना कोई बेगाना भी न हो

                     इस दुनिया में तो स्वार्थ के रिश्ते हैं
                     हो स्वार्थ तो बनते सभी फ़रिश्ते हैं
                     वरना मुँह मोड़ें सभी जैसे अपना न हो

 इक तू ही मेरा हमदर्द है साड़ी दुनिया खुदगर्ज़ है
तुझको ही सुनाऊँ दास्तां सुने क्यों ये जहाँ बेदर्द है
सब अपना जी यूँ चुरायें जैसे कोई वास्ता न हो

                 जो हो दुखिया ठुकराए जहाँ उसे कोई न अपनाये यहाँ
                  एक तू ही तो अपना है मेरा तुझे छोड़ भला जाऊँ कहाँ
                 आजा सुनले फरियाद मेरी दुनिया में अफसाना न हो
@मीना गुलियानी 

1 टिप्पणी: