काँटों पर चलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
अपना मन छलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
जीवन तो है बहता पानी यही है इसकी कहानी
कैसे रोकेगा कोई इसको दरिया हो या जवानी
रिश्तों को बदलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
मन तो है इक पागल पंछी कैसे इसे समझाएं
उड़ता रहे ये धुन में अपनी कोई बाँध न पाए
पिंजरे में ही पलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
दिल का सूनापन तो देखो मन वैरागी गाये
मनवीणा का तार जो टूटा सुर भी कैसे आये
सुर ताल बदलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
@मीना गुलियानी
अपना मन छलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
जीवन तो है बहता पानी यही है इसकी कहानी
कैसे रोकेगा कोई इसको दरिया हो या जवानी
रिश्तों को बदलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
मन तो है इक पागल पंछी कैसे इसे समझाएं
उड़ता रहे ये धुन में अपनी कोई बाँध न पाए
पिंजरे में ही पलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
दिल का सूनापन तो देखो मन वैरागी गाये
मनवीणा का तार जो टूटा सुर भी कैसे आये
सुर ताल बदलने वालों को चैन कहाँ आराम कहाँ
@मीना गुलियानी
कैसे है आप रचना अच्छी है
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