तूने तो रुलाने में कोई कमी नहीँ की है
लेकिन फिर भी देख मेरे होंठो पे हँसी है
चींटी भी फिसलती है चट्टान से आखिर
लेकिन सम्भलकर वो भी सौ बार चढ़ी है
सोने में तो सारी ये अपनी उम्र गुज़ारी
अब जाग ज़रा मन ये घड़ी बीत रही है
बाकी नहीँ रह गए कोई रिश्ते या नाते
दुनिया ये सारी तो मतलब से भरी है
गैरों से नहीँ शिकवा जो दुःख लाख दे हमें
ग़म है कि ये तिश्नगी अपनों से मिली है
@मीना गुलियानी
लेकिन फिर भी देख मेरे होंठो पे हँसी है
चींटी भी फिसलती है चट्टान से आखिर
लेकिन सम्भलकर वो भी सौ बार चढ़ी है
सोने में तो सारी ये अपनी उम्र गुज़ारी
अब जाग ज़रा मन ये घड़ी बीत रही है
बाकी नहीँ रह गए कोई रिश्ते या नाते
दुनिया ये सारी तो मतलब से भरी है
गैरों से नहीँ शिकवा जो दुःख लाख दे हमें
ग़म है कि ये तिश्नगी अपनों से मिली है
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें