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गुरुवार, 22 सितंबर 2016

मेरे होंठो पे हँसी है

तूने तो रुलाने में कोई कमी नहीँ की है
लेकिन फिर भी देख मेरे होंठो पे हँसी है

चींटी भी फिसलती है चट्टान से आखिर
लेकिन सम्भलकर वो भी सौ बार चढ़ी है

सोने में तो सारी ये अपनी उम्र गुज़ारी
अब जाग ज़रा मन ये घड़ी बीत रही है

बाकी नहीँ रह गए कोई रिश्ते या नाते
दुनिया ये सारी तो मतलब से भरी है

गैरों से नहीँ शिकवा जो दुःख लाख दे हमें
ग़म है कि ये तिश्नगी अपनों से मिली है
@मीना गुलियानी


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