मेरे मन के महासागर पर
@मीना गुलियानी
प्रतिहिंसा के बन्दरगाह मत बाँधो
क्योंकि तब आस्था का हिमालय
हिल उठेगा आशा का ये द्वीप
बंजर सा हो जाएगा
सत्ता के गलियारों का सन्नाटा
मुझे भयभीत सा करता है
कोलाहल से कहो कि आये
और मुझे अपने भीतर आत्मसात करले
इन ऊँची इमारतों की लम्बी परछाईयाँ
लगता है सब उजाले की जड़ें काट देंगी
मैं बहुत दूर जाना चाहता हूँ
कभी ख़्वाबों में, कभी तसव्वुर में
तेरा हाथ पकड़कर उस पार जाना चाहता हूँ
पर फिर लगता है मेरे पाँव तले ज़मीन नहीँ है
तू मेरा सच है पर मुझे यकीन नहीँ है
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