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शुक्रवार, 23 सितंबर 2016

मुझे यकीन नहीँ है

मेरे मन के महासागर पर 

प्रतिहिंसा के बन्दरगाह मत बाँधो 

क्योंकि तब आस्था का हिमालय 

हिल उठेगा आशा का ये द्वीप 

बंजर सा हो जाएगा 

सत्ता के गलियारों का सन्नाटा 

मुझे भयभीत सा करता है 

कोलाहल से कहो  कि आये 

और मुझे अपने भीतर आत्मसात करले 

इन ऊँची इमारतों की लम्बी परछाईयाँ 

लगता है सब उजाले की जड़ें काट देंगी 

मैं बहुत दूर जाना चाहता हूँ 

कभी ख़्वाबों में, कभी तसव्वुर में 

तेरा हाथ पकड़कर उस पार जाना चाहता हूँ 

पर फिर लगता है मेरे पाँव तले ज़मीन नहीँ है 

तू मेरा सच है पर मुझे यकीन नहीँ है 
@मीना गुलियानी 

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