यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

दिल के दाग़ जले

लो बुझ चली है शमा इस गरीबखाने की
उम्मीद टूट चुकी है अब तेरे आने की

जुनूने शौक  में तासुबह दिल के दाग जले
तुम कह गए थे कि आएंगे हम चिराग जले

अब तो मेरी तमन्नाओं में अँधेरा है
न सोच दिल ये मेरा  कैसे अँधेरे में पले

तुझे खबर भी कैसे हो कि सोज़े गम क्या है
न दिल जला कभी तेरा न दिल के दाग़ जले
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें