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बुधवार, 21 सितंबर 2016

खुदा भी तुझपे रहे मेहरबाँ

ऐ दिल कहाँ तेरी मंजिल
खामोशी हरसू है ,
 गुम हर सितारा है
चुप है ज़मी ,चुप आसमाँ

किसलिए बनके महल टूटते हैं
रिश्ते बनके भी क्यों टूटते हैं
किसलिए दिल टूटते हैं
पत्थर से पूछा बहारों से पूछा
खामोश है सबकी जुबाँ

चल तू गम का जहाँ न निशाँ हो
चल तू जहाँ पे खुला आसमाँ हो
खुशियों से वो भरा इक जहाँ हो
दिल को मिलेगी मंजिल वहाँ
पाएंगे हम कदमो के निशाँ

अब तू जो हंसदे तो हँस देंगे साये
चाहे अपने हों चाहे पराये
रूठों को मनाएं
मिलके रहेगी जन्नत तुझे
खुदा भी तुझपे रहे मेहरबाँ
@मीना गुलियानी

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