यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 17 सितंबर 2016

सुन ज़रा मान भी जा

सुन ज़रा मान भी जा , और कुछ देर न जा
अभी है पहला पहर , थोड़ी देर और ठहर

अभी तो चाँद झिलमिलायेगा
तेरा ये नसीब जाग जाएगा
खुलके बातें करेंगे जी भरके
तुझको देखा नहीँ है जी भरके
सुन ज़रा ---------------------

रौशनी आफताब लाएगी
तारों की फिर बारात आएगी
डोली मेरी भी तब उठा लेना
मुझको जी भरके तुम मना लेना
सुन ज़रा ------------------------

आज धरती पे चाँद उतरा है
तेरा मुखड़ा भी कैसा निखरा है
तेरी पलकें झुकी झुकी सी हैं
साँसे तेरी रुकी रुकी सी हैं
सुन ज़रा --------------------------
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें