हे मेरे गुरुदेव करुणा सिंधु करुणा कीजिये
हूँ अधम अधीन अशरण अब शरण में लीजिये
खा रही हूँ गोते मै भवसिंधु मंझधार में
आसरा है दूसरा न कोई अब संसार में
मुझमे है जप तप न साधन और न ही ज्ञान है
निर्लज्जता है एक बाकी और बसअभिमान है
पाप बोझे से लदी नैया भँवर में आ रही
नाथ दौड़ो अब बचाओ जल्दी डूबी जा रही
आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगी मै
जन्म दुःख से नाव कैसे पार कर पाऊँगी मै
सब जगह से प्रभु भटककर ली शरण अब आपकी
पार करना या न करना दोनों मर्जी आपकी
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें