अब तो माधव मोहि उबार
दिवस बीते रैन बीती बार बार पुकार
नाव है मंझधार भगवन पार आके लगाओ
हे दीनानाथ कृष्णा आके मोहि बचाओ
कामक्रोध समेत तृष्णा रही पल पल घेर
घिरी है घनघोर बदली मत लगाओ देर
दौड़कर आये बचाने द्रौपदी की लाज
छोड़ तेरा द्वार मै किस द्वार जाऊँ आज
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें