है मस्त फकीरी वो जिसमे शाहों की भी परवाह न हो
दुनिया दौलत में मस्त रहे मैं मस्त रहूँ तुमको पाकर
निर्धनता की इस ज्वाला से तिल भर भी मन में दाह न हो
घर घर में पाऊँ पूजा मैं या घर घर में अपमान मिले
दोनों में ही मुस्कान रहे मन के अंदर भी आह न हो
पर दुःख में रोऊँ मैं जी भर पर अपना दुःख न रुला सके
पर सुख को अपना सुख मानूँ सुखियो की मन में डाह न हो
हर रंग रहे इस जीवन में पर मैल न मन में आ पाए
विचरे मन संयम के पथ पर पल भर को भी गुमराह न हो
@मीना गुलियानी
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