यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

बारिश में सारे सपने सजा दे

तेरी जुल्फ जैसे छाई हो सावन की घटा
ऐ रूप की रानी  ज़रा इक झलक तो दिखा 

मुखड़ा क्यों छिपाया है आज घूंघट की ओट में
 ऐसा लगा चाँद छुप गया है बादल की ओट में

बिजली सी चमकी आकाश में लहराती हुई 
उड़ाके ले गई चुनरिया हवा बल खाती हुई 

मुझे यह देखकर रश्क हुआ न जाने क्यों 
मेरे सामने ही हवा ने चुनरी को छुआ क्यों 

खेतों में भी नई फसल लगी है उगने 
हल चला दिए किसानो ने बारिश की ख़ुशी में 

आओ अब तुम भी  कदम तो बढ़ाओ 
आया है झूमता सावन हँसो नाचो गाओ 

संग संग नाचेंगे गाएंगे बनाकर इक टोली 
झूमेंगे संग संग बरखा में मेरे हमजोली 

नशा छा  रहा है बदन में सरुर मेरे  इस तन में 
शायद  तेरी उल्फ़त का जादू सा जगा है मन में 

महकी  है वादी फ़िज़ा ने मौसम में रंग घोला है 
देखकर रूप तेरा शायद इसका मन भी डोला है 

मेरी आँखों में मस्ती सी छाने लगी है 
थोड़ी नींद भी मुझको आने लगी है 

पपीहे की सदा मन को भाने  लगी है 
गोरी भी थोड़ा सा शर्माने लगी है 

चलो आज हम सारे गमों को भुला दे 
भीगें बारिश में सारे सपने सजा दे 
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां: