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सोमवार, 18 जुलाई 2016

भजनमाला ---------90

संत जगत में आते है जग तारण के लिए
आधि व्याधि उपाधि अविद्या टारन के लिए

सूरत से इक मूर्त बनकर संत जगत में आते है
सेवा कर श्रद्धालु उनसे चार पदार्थ पाते है
मन रूपी रावण की ममता मारन के लिए

संत की महिमा वेद  न जाने संत गुरु बतलाते है
नारद भी वीणा को लेकर गीत संतो के गाते है
धर्मरूपी धरती को आये धारण के लिए

प्रेम किया प्रह्लाद तभी तो भवसागर से पार हुआ
नरसिंह रूप धरयो नारायण सतसंग में अवतार हुआ
राम संत में भेद न जानो प्यारन के लिए
@मीना गुलियानी 

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. सुन्दर प्राचीन रचना, मेरे पास उपलब्ध शब्दों/पदों में कुछ भिन्नता है:

    संत जगत में आते हैं भव तारण के लिये
    आधि व्याधि उपाधि अविद्या ठारण के लिये।।
    सूरत से इक मूरत बनकर संत जगत में आते है
    सेवा कर श्रद्धालु उनसे चार पदार्थ पाते है
    मन रूपी रावण की ममता मारन के लिए । आधि व्याधि उपाधि...
    जंगमतीर्थ जगत के ये, सब पर किरपा बरसाते हैं।
    सेवा कर श्रद्धालु उनसे, चार पदारथ पाते हैं।
    धरमरूप धरणी को, आए धारण के लिये। आधि व्याधि उपाधि...
    संत गुरु की सेवा भक्ति, गोस्वामि का ज्ञान यही है,
    ईश वन्दना ध्यान यही है, वेदों का आख्यान यही है।।
    अविद्या रूपी अग्नि, आए ठारण के लिये। आधि व्याधि उपाधि..
    संत की महिमा वेद न जानें, धर्म ग्रन्थ बतलाते हैं।
    सबहित रत और परदुख कातर, सब पे दया दिखाते हैं।।
    राम संत में भेद न जानो, भवपारण के लिए । आधि व्याधि उपाधि...

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