यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

अन्तर राह टटोल

रे मन सम्भल सम्भल पग धर  रे अंतर आँखे खोल
ऊबड़ खाबड़ मांस भू पर , कदम न जाए डोल

देख पड़े है पथ में रोड़े  क्रोध मान पद लोभ
मोह महीधर देख बीच में मत करना मन क्षोभ
इनकी राह अलग है तेरी, अन्तर राह टटोल

देख सतर्क बने रहना मत करना इनसे छेड़
ज्ञाता द्रष्टा साक्षी भावे रहकर इन्हें खदेड़
ये जड़ नश्वर सतत विनश्वर तेरा मोल अमोल
@मीना गुलियानी 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें