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मंगलवार, 5 जुलाई 2016

सावन की बरखा लाई बहार

कैसी घटा ये बरसी है आज
मौसम भी है खुला खुला
फूलों पे रंगत छाई है अाज
चंदा का रंग कुछ धुला धुला
सूरज की किरणों ने मुँह छिपाया
बादल को अपना पर्दा बनाया
चंचल किरण इक बोली यूँ आज
छिपने दो मुझको आती है लाज
फूलों से बोली भँवरों की टोली
आओ जी खेलें आंखमिचौनी
सावन की बरखा लाई बहार
आओ छेड़ें हम सब मल्हार
झूला भी झूलें गीत भी गाएँ
हम तुम मिलकर रास रचाएं
चाँद भी आया छूके आकाश
धरती पर फैलाने लगा प्रकाश
सपनो की गगरी ले चली रातरानी
यमुना किनारे भरने को पानी
नटवर ने जब अपनी बंसी बजाई
सब गोपियाँ भागी भागी आई
वृंदावन में तो  धूम मची है
राधा पर क्यों बेसुध पड़ी है
सुनते ही बंसी वो कान्हा की
हिरणी जैसे भाग पड़ी है
@मीना गुलियानी

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