हरि मोको ले चल अपने धाम
मन इंद्री रस लोभ लुभाना बसियो हाड मांस को चाम
तन मन के पंजरे में बैठकर भूल गयो अपना धाम
मोहमाया का रूप हो गयो बसियो जादू के धाम
अब निकसूं कस निकसिया जाए कर बैठ्यो इसमें विश्राम
हरि सतगुरु मोहि आन बचावो नही तो पड़ा रहू इस ग्राम
बात बनाऊं करूँ कछु नाही कस पहुँचूँ प्रीतम तोरे ग्राम
घट के पट खोलो मोरे हरिज्यू मै तो हार पड़ा तेरी छाम
मै अवगुण भरा कोई गुण नाहीँ किस मुँह से करूँ प्रणाम
आपन विरद आप करि राख्यो हरि जी दास ऊपर सिर छाम
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें