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गुरुवार, 28 जुलाई 2016

भजनमाला--------106

हरि मोको ले चल अपने धाम 
मन इंद्री रस लोभ लुभाना बसियो हाड मांस को चाम 

तन मन के पंजरे में बैठकर भूल गयो अपना धाम 
मोहमाया का रूप हो गयो बसियो जादू के धाम 

अब निकसूं कस निकसिया जाए कर बैठ्यो इसमें विश्राम 
हरि सतगुरु मोहि आन बचावो नही तो पड़ा रहू इस ग्राम 

बात बनाऊं करूँ कछु नाही कस पहुँचूँ प्रीतम तोरे ग्राम 
घट के पट खोलो मोरे हरिज्यू मै तो हार पड़ा तेरी छाम 

मै अवगुण भरा कोई गुण नाहीँ किस मुँह से करूँ प्रणाम 
आपन विरद आप करि राख्यो हरि जी दास ऊपर सिर छाम 
@मीना गुलियानी 

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