यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 7 जुलाई 2016

पूरा हुआ ऋतुसंहार

चंचल हवा ये किसी सुगन्धि लाई है
फूलों की खुशबु मलयाचल से आई है
चम्पा महुआ केवड़ा सबने  इत्र बनाया
इस प्यारी घाटी पर उसे दिया छितराया
सूरज की लाली जब अस्ताचल से आई
उसकी किरणें सबके मन को अति भाई
धीरे धीरे फिर मेघ आया बरखा को संग लाया
लगा ठुमकने गुनगुनाने वो संग बरखा के
राग मल्हार गाकर उसने पानी बरसाया
ध्रुपद षड्ज भी तान सुनाने को हुए तैयार
इंद्रधनुष के निकलते ही रुत में आया निखार
ऐसा लगा मानो आज पूरा हुआ ऋतुसंहार
भेजा  प्रेयसी को संदेश मेघ को दूत बनाकर
क्यों न गर्व करें वो अपने स्वाभिमान पर
रूठे प्रियतम घर है लौटे प्रेयसी ने की मनुहार
जब मौसम ने किया श्रृंगार रचा नया  संसार
कैसे न माने प्रीतम प्रेयसी की सुनकर पुकार
@मीना गुलियानी  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें