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बुधवार, 22 अप्रैल 2015

गुरुदेव के भजन-105 (Gurudev Ke Bhajan105)




गीत बाबा के गाते रहो चरणों में सिर को झुकाते रहो 
छोड़के जग की मोह ममता ,बाबा की शरण में जाते रहो 

बाबा जी है पालनकर्ता नवजीवन के दाता 
इनका ऋण है सबसे ऊपर सबसे ऊँचा जाता 
इनकी ज्योति जलाते रहो 

ये ही सुख को देने वाले पाप निवारने वाले 
दुष्टो के नाम खपाने वाले भक्त उबारने वाले 
उनकी लगन को लगाते रहो 

जो कोई उसकी जोत  जगाता चौरासी कट जाती 
छोड़ के फंदे पहुँच जाता पा जाता अपनी थाती 
नेह उसी से लगाते रहो 


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