न जाने क्यों तुम्हारा स्मरण होते ही भर आंते है नैना मेरे
वो सागर वो नदी का किनारा लो अब छूटा साथ तुम्हारा
ख़ुशी से बीते वो क्षण अब स्वप्न बन विचरते है
आँखों में सीप के मोती की तरह अश्रु निकलते है
दिल कोना सूना पड़ गया परछाई बाकी है
इक चिंगारी दबी रह गई जो कभी सुलग पड़ती है
थामकर हवाओं का दमन मैने इक खता की
जिसकी मुझे सज़ा मिली हवाओं के झोंके से
वो दामन भी मुझसे अब छूट गया साँस बाकी है
न जाने कब दिल की धड़कन बंद हो जाए
और तमन्नाएँ दिल की सिसकती रह जाएँ
याद तुम्हारी दिल की दिल में ही रह जाए
@मीना गुलियानी
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