यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

इक नई भोर

ये कौन आया कि सांसो में महक आने लगी 
ये कौन आया कि फूलों से खुशबु आने लगी 

किसके आने से बागों में बहार आई है 
किसके आने से हर कली कली मुस्कुराई है 

किसके आने से कली दिल की खिल उठी 
किसके आने से हवा खुलके झूम उठी 

किसने उपवन मेरा आज महकाया है 
दबे पाँव ये यहाँ कौन चलके आया है 

तितलियाँ झूमने लगीं पराग उमड़ उठा 
भँवरो का भी गुंजन राग आज बज उठा 

चाँद तारों ने गगन को रौशनी से नहलाया है 
जुगनुओं ने टिमटिमाकर चमक को बढ़ाया है 

बादलों ने अपनी  काली घटा छितराई है 
कहीं कहीं बिजली की किरण चोंधयाई है 

पलकों में आके ये चुपके से कौन मुस्काया है 
किसने मस्ती भरा गीत कानों में गुनगुनाया है 

हवा ने भी अपना परचम आज लहराया है 
दूर से सब परदेसियों को संदेश भिजवाया है 

अब सभी लौट चले है अपने देस की ओर 
जहाँ पर बुला रही है सबको इक नई भोर 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें