यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016

मनवा है बेचैन

चैन मुझे मिलता नहीं मनवा है बेचैन 
दिलबर तेरी दीद को हरदम तरसे नैन 

प्रीतम तुम कब आओगे और न सताओगे 
हर पल पंथ निहारूँ मै होकर मै बेचैन 

पल  छिन राह निहारूँ मै इक पल न बिसारूँ  मै 
पलक न झपके मेरी निरखत हूँ दिन रैन 

कैसे तोडू प्रीत को झूठी जग की रीत को 
बंधन तोड़ न पाऊँ मै तड़पत हूँ दिन रैन 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें