मंजिल की ओर बढ़े कदम पर मंजिल पाना मुश्किल है
कुछ जाल रकीबों ने ऐसे बुने जिन्हें तोड़ पान मुश्किल है
तूफां के थपेड़ों में पड़कर साहिल तक आना मुश्किल है
मौजों की ऊंचाई के आगे पतवार चलाना मुश्किल है
दीदार तो उनका क्या होगा कुछ सोच भी पाना मुश्किल है
जख्मों को तो हमने झेल लिया पर होश में आना मुश्किल है
हाले बयां हम क्या करते कुछ लिख पाना मुश्किल है
अपने हरफों को ही अब तो समझ पाना मुश्किल है
@मीना गुलियानी
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