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मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

रोता है ज़ार ज़ार क्यों



ऐ दिल सम्भल जा अब न सता रोता है ज़ार ज़ार क्यों
जब ये  चमन उजड़ गया लौटेगी अब बहार क्यों

                   पत्ते चिनारों के झड़ गए बागबां सारे उजड़ गए
                  छाई है हरसू वीरानियाँ वक्त का इंतज़ार क्यों

छा गई है यूँ खामोशियाँ चुप हो गईं है सरगोशियाँ
गुलशन उजड़ गया मेरा माली का इंतज़ार क्यों

                      हर शाख अब बेनूर है डाली पे अब न सरुर है
                      फ़िज़ा की रुत बदल गई मौसम का ऐतबार क्यों 
@मीना गुलियानी 

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