यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

तर्ज --ऐ मेरे दिल नादान (माता की भेंट)

मुझे आस तेरी मैया ना निराश मुझे करना 
सब कष्ट हरो मेरे आंचल की छाँव करना 

मेरे मन के द्वारे में आ करलो बसेरा माँ 
तेरी जोत जले मन में हो दूर अँधेरा माँ 
मै आया शरण तेरी मुझे दर्श दिखा देना 

मेरी आस का बंधन माँ टूट न जाए 
क्या साँस का भरोसा पल आये न आये 
मेरे नैन प्यासे है मेरी प्यास बुझ देना 

सब देख लिया जग को माँ कोई नहीं अपना 
सब झूठे नाते है जग सार इक सपना 
मै भटका मुसाफिर हूँ तू राह दिखा देना 
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें