मन तो है इक पागल इसकी बातें कोई क्या जाने
हर पल कैद में रहना चाहे और कुछ भी न जाने
कितना तड़पाता है ये मुझको क्या तुमने कभी जाना है
तेरे साथ गुज़ारा हर पल कितना लगे सुहाना है
लेकिन लम्बी जुदाई की रातें गुज़री कैसे क्या जाने
तू तो मेरे साथ है फिर भी जाने क्यों ये मन उदास है
शायद कल बिछुड़ने का भी इसको थोड़ा आभास है
तेरे बिना अब जीना कैसे और मरना ये क्या जाने
मिल जाओ जो तुम मुझको आँखों में छुपा लूँ
इक पल भी मै करूँ न ओझल सीने में बसा लूँ
लेकिन कब आएगा वो पल ये हम तुम क्या जाने
@मीना गुलियानी
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