तेरे नाम को हे महाराज ध्याऊँ रोज सुबह और शाम
तू ही नभ में तू ही मन में तू ही जल में तू ही थल में ,
तेरा रूप अनूप जहान
फँस गए हम तो बीच मंझधार ,तुम बिन कौन उतारे पार ,
काटो विपद हमारी आन
झूठी माया झूठी काया क्यों मानव इसमें भरमाया,
तज दे अपनी झूठी शान
जीवन है इक झूठा सपना झूठे जग में कौन है अपना,
लूटें माया मोह अज्ञान
रोम रोम में तेज तुम्हारा भूमण्डल तुमसे उजियारा,
रवि शशि तुमसे ज्योतिर्मान
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