मगन ईशवर की भक्ति में अरे मन क्यों नहीं होता
पड़ा आलस्य में मूर्ख रहेगा कब तलक सोता
जो इच्छा है तेरे कट जाएँ सारे मैल पापों के
प्रभु के प्रेम जल में क्यो नहीं अपने को तू धोता
विषय और भोग में फंसकर न कर बरबाद जीवन को
दमन कर चित्त की वृत्ति लगा ले योग में गोता
नहीं संसार की वस्तु कोई भी सुख की हेतु है
वृथा इनके लिए फिर क्यों समय अनमोल तू खोता
धर्म ही एक ऐसा है जो होगा अंत का साथी
न जोरू काम आएगी न बेटा और पोता
भटकता जा बजा नाहक फिरे सुख के लिए तू क्यों
तेरे तन के ही भीतर तो भी बहे आनंद का सोता
@मीना गुलियानी
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