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शनिवार, 28 मई 2016

भजनमाला---18

कर भजन तू रे बन्दे कि इक दिन छोड़  ये जग है जाना 

तोड़ दे इस झूठी नगरी को  क्यों  इनमें भरमाया 
छोड़ दे इस झूठी नगरी को क्यों संसार बसाया 
क्यों तू मोह में भूल गया रे साथ न कुछ भी जाना 

विषयों की भूल भुलैया में तू वचन गर्भ का   भूला 
ईशवर सुमिरन कर  न पाया यौवन में तू फूला 
तन पर कर अभिमान हे बन्दे अब है पड़ा पछताना 

ये जग है इक पंछी का डेरा छोड़के इक दिन उड़ना 
नाम प्रभु का जप ले तू जो भव से पार उतरना 
 छोड़के झूठे धंधे  जग के प्रभु की शरण में आना 

प्रभु का नाम पतितपावन है तर गए पापी सारे 
गौतमी और अहिल्याबाई  जो थे शाप के मारे 
है मेरा प्रभु दयालु ऐसा पल में मिले ठिकाना 
@मीना गुलियानी  

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